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कृष्ण सुदामा | Krishna Sudama | Movie | Tilak 3 года назад


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कृष्ण सुदामा | Krishna Sudama | Movie | Tilak

Watch the Video Song "काल भैरव अष्टक " :    • काल भैरव अष्टक। Kaal Bhairav Ashtakam...      • Shree Krishna Janmashtami Special | M...   मधुराष्टकम्। नीति मोहन।सिद्धार्थ अमित भावसार। श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष। तिलक प्रस्तुति    • बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुम...   बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 Subscribe to Tilak for more devotional contents - https://bit.ly/SubscribeTilak श्री कृष्ण रुक्मिणी को बताते हैं की वह मेरा मित्र भी है इसलिए वह मेरे से कुछ भी नहीं माँगता वह मेरा भक्त भी है परंतु मित्र होने के कारण वह कुछ भी नहीं माँगता। श्री कृष्ण से रुक्मिणी कहती हैं की मैं सुदामा की ऐसी दशा देख नहीं सकती और उनसे कहती है की सुदामा का उद्धार करें। रुक्मिणी जब सुदामा को भिक्षा में खीर देने के लिए प्रेरित करती हैं लेकिन वह खीर गिर जाती है और उसे एक कुत्ता खा लेता है। इस पर श्री कृष्ण रुक्मिणी को बताते हैं की ये सब प्रारब्ध देवी की माया है यह उसे भोगना हाई पड़ेगा। श्री कृष्ण रुक्मिणी को कहते हैं की सुदामा का भाग्य बस अब बदलने ही वाला है। सुदामा के बच्चे अपने माता पिता से खाने को माँगते हैं और भूख के कारण रोते हैं। सुदामा की पत्नी सुदामा से कहती है की हमें मारने से पहले एक दिन तो हमें सुख का देखा दे। सुदामा वसुंधरा से कहता है की श्री कृष्ण हमारे सब कष्टों को देख रहे हैं और वो सब कष्ट दूर ज़रूर करेंगे। एक दिन जब सुदामा भिक्षा माँग रहा था तो उसे उसका मित्र चक्रधर मिलता है। चक्रधर सुदामा को भिक्षा माँगने के लिए राजा के पास जाने के लिए कहता है और इस दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए कहता है लेकिन सुदामा मना कर देता है। सुदामा जब अपने घर में भोजन करने के लिए बैठता है तो उसे ग़ाऊ माता की आवाज़ आती है तो वह अपने भोजन में से एक हिस्सा ग़ाऊ माता को खिला आता है और दूसरा हिस्सा वह द्वार पर आए हुए भिक्षुक को दे देता है। वह स्वयं जल पीकर अपनी भूख को मिटा लेता है। दूसरी ओर श्री कृष्ण जैसे हे भोजन करने बैठते हैं तो उन्हें सुदामा का भूखे पेट होने की अनुभूति होती है तो वह भी भोजन करे बिना उठ जाते हैं। श्री कृष्ण रुक्मिणी, जामवंती और सत्यभामा को बताते हैं की सुदामा के दुःख मैं तभी दूर कर सकता हूँ जब वह मेरे पास आएगा। सुदामा के घर उसका मित्र चक्रधर आता है और उसे फिर से कहता है की राजा के दरबार में जाकर राजा के गुणों का गुणगान करे। लेकिन सुदामा मना कर देता है। चक्रधर वसुंधरा को सुदामा को मनाने के लिए कहता है। चक्रधर के जाने के बाद वसुंधरा सुदामा को राजा के दरबार में जाने के लिए मनाती है। सुदामा वसुंधरा की बात माँ राजा के दरबार में चला जाता है। चक्रधर सुदामा को अपने साथ राजा के पास ले जाता है। राजा मदिरा पान करते हुए सुदामा को एक कविता सुनाने के लिए कहता है जिसमें राजा की प्रशंसा हो। चक्रधर राजा के लिए गीत गाता है जिस से प्रसन्न होकर धन देते हैं। जब राजा सुदामा को गीत गाने के लिए कहता है तो सुदामा नहीं गा पाता। जब सुदामा को राजा क्रोधित हो कर, गाने के लिए कहता है तो सुदामा राजा को ऐसा गीत सुनते हैं जिसमें उसे कहता है की उसे अपना अहंकार को त्याग देने चाहिए और श्री हरी का गुणगान करना चाहिए। इस से क्रोधित हो कर राजा अपने सिपाहियों को बुलाता है और सुदामा को मारने के आदेश देता है। लेकिन तभी चक्रधर राजा की झूठी प्रशंसा करते हुए राजा को सुदामा को माफ़ करने के लिए मना लेता है। राजा सुदामा को महल से धक्के मार कर बाहर निकलने को कहता है। सुदामा ज़ख़्मी होकर अपने घर आता है वसुंधरा उसके जख्मों पर मरहम लगती है। वसुंधरा सुदामा को कहती है की उस से अब यह और नहीं सहा जाता है। वसुंधरा सुदामा को श्री कृष्ण के पास जाने के लिए कहती है और उनसे अपने लिए सुख माँगने में क्या आपत्ति है। सुदामा वसुंधरा को बताता है की मैं अपने भगवान से माँगने में नहीं शर्माता हूँ लेकिन अपने मित्र से कैसे माँगूँ और मेरी वहाँ जाने से उन्हें कैसा लगेगा मेरी इस हालत से जब वो मुझे अपने गले लगाएंगे तो उनका कितना अपमान होगा। वसुंधरा सुदामा के ज़ख्मों पर दिए से तेल लाकर लगाने के लिए कहती है तो सुदामा वसुंधरा को मना कर देता है की यह तेल दीपक में ही रहने दो यदि कल भिक्षा नहीं मिली तो कल दीपक भी नहीं जल पाएगा। वसुंधरा श्री कृष्ण को तना देती है की आकर वो हे तुम्हारी सेवा क्यों नहीं करते। श्री कृष्ण वहाँ आ जाते हैं और सुदामा के सोते हुए उसके जख्मों पर माखन लगा जाते हैं। सुदामा को वसुंधरा श्री कृष्ण के पास जाने के लिए कहती है तो सुदामा श्री कृष्ण के पास जाने को राज़ी हो जाता है। सुदामा अगले सुबह द्वारिका की ओर जाने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन ख़ाली हाथ जाने में संकोच होता है तो वसुंधरा पड़ोस से उधर में दो मुट्ठी तंदूर ले आती है. सुदामा श्री कृष्ण से मिलने के लिए निकल पड़ता है। सुदामा द्वारिका की ओर चल पड़ता है। सुदामा रास्ते में बड़े कष्ट सहन करता है लेकिन रुकता नहीं। सुदामा को द्वारिका तक पहुँचने में मदद करने के लिए श्री कृष्ण वहाँ आ जाते हैं। श्री कृष्ण मुरली मनोहर के रूप में सुदामा के साथ द्वारिका की ओर चल पड़ते हैं और रस्ते भर उनके साथ ठिठोली करते हुए छेड़ते हुए जाते हैं। रात्रि में विश्राम के करने के लिए एक खंडहर में रुक जाते हैं। श्री कृष्ण सुदामा को रात्रि में अपने साथ भोजन कराने के लिए मना लेते हैं परंतु जैसे ही सुदामा भोजन करने लगता है तभी उसे अपने बच्चों और पत्नी की याद आ जाती है की वो भी भूखे होंगे। वहीं दूसरी ओर चक्रधर सुदामा के घर भोजन लेकर आता है ताकि उसके बच्चे भोजन कर सकें लेकिन वसुंधरा भोजन लेने से मना कर देती है। चक्रधर उनकी इस बात से प्रसन्न होकर वो वहाँ से वापस चला जाता है। In association with Divo - our YouTube Partner #SriKrishna #SriKrishnaonYouTube

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