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🧔🏻♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं? लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir... ⚡ आचार्य प्रशांत से जुड़ी नियमित जानकारी चाहते हैं? व्हाट्सएप चैनल से जुड़े: https://whatsapp.com/channel/0029Va6Z... 📚 आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं? फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?... 🔥 आचार्य प्रशांत के काम को गति देना चाहते हैं? योगदान करें, कर्तव्य निभाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/contri... 🏋🏻 आचार्य प्रशांत के साथ काम करना चाहते हैं? संस्था में नियुक्ति के लिए आवेदन भेजें: https://acharyaprashant.org/hi/hiring... ➖➖➖➖➖➖ #acharyaprashant वीडियो जानकारी: 09.03.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा प्रसंग: ~ सच्चाई से बचने के लिए हमारे पास क्या तरीके होते हैं? ~ धर्म की दुकान में मनोरंजन का तड़का क्यों लगता है? ~ अहंकार से सामने कौन से दो रास्ते होते हैं? ~ हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? ~ वस्तु का वास्तविक अर्थ क्या है? राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे ! अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार, अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे ॥1।। अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद, अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे ॥2॥ अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव, अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे ॥3॥ अंजन कहों कहां लग केता? दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा ! कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ! ॥4॥ ~ संत कबीर यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं। शीश उतारे भुई धरे, तब बैठे घर माहिं ।। ~ संत कबीर अंजन कहों कहां लग केता, दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा । कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ।। ~ संत कबीर कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् । इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥ जो अज्ञानी व्यक्ति मन से तो शब्दस्पर्शादि इन्द्रियों के विषय का चिंतन करता है, पर हाथ-पैर आदि कर्मेन्द्रियों को ऊपर से संयत करके रहता है वो मिथ्याचारी कहलाता है। ~ भगवद गीता - 3.6 संगीत: मिलिंद दाते ~~~~~