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रामायण कथा🙏- श्री राम भक्त भरत मिलाप | Shri Ram Bhakt Bharat | Pandit Gaurangi Gauri Ji 1 год назад


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रामायण कथा🙏- श्री राम भक्त भरत मिलाप | Shri Ram Bhakt Bharat | Pandit Gaurangi Gauri Ji

हिंदु पौराणिक कथाओं में रामायण और महाभारत का नाम सबसे पहले लिया जाता हैं. सबसे पहले युग आया था – रामायण का, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का युग और उसे ही कहा जाता था – “राम राज्य 🙏 🙏 Jai Shree Ram 🙏🙏 Tittle - Shree Ram Bhakt Bharat Milap Singer - Pt Gaurangi Gauri Ji Music - Raj Sharma Producer - Fatafat Digital Pvt Limited Label - Bhakti Veena रघुकुल वंश के महाराज दशरथ के चारों पुत्र– राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न अपनी शिक्षा – दीक्षा पूर्ण करके अयोध्या लौट आते हैं, उसके पश्चात् चारों भाइयों का विवाह महाराज जनक की पुत्रियों से हो जाता हैं. ये सभी शुभ प्रसंग चलते रहते हैं और महाराज दशरथ अपने सबसे बड़े पुत्र राम को राजा बनाने का निर्णय लेते हैं. इस निर्णय से सभी प्रसन्न होते हैं. परन्तु महारानी कैकयी की दासी मंथरा इस संबंध में कैकयी के मन में विष घोलती हैं और राम को राजा न बनने देने के लिए कैकयी को उकसाती हैं. वैसे तो महारानी कैकयी राम से बहुत प्रेम करती थी, परन्तु वे उस समय मंथरा की बातों में आ जाती हैं और इसी कारण उन्होंने महाराज दशरथ को विवश कर दिया कि वे भगवान राम को 14 वर्षों का वनवास दें और भरत को राज्य दे. महाराज दशरथ को भी विवशता में इस बात के कारण ये निर्णय लेनें पड़े और राम अपनी धर्मपत्नि सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन की ओर चल दिए. जब ये सब घटनाएँ हो रही थी, तब राजकुमार भरत और राजकुमार शत्रुघ्न अपने नानाजी के घर गये हुए थे. उन्हें इन सब घटनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. अपने पुत्र राम के वियोग में महाराज दशरथ की मृत्यु हो गयी और ये दुखद समाचार सुनकर जब राजकुमार भरत और राजकुमार शत्रुघ्न वापस आए, तो उन्हें अपने बड़े भाई भगवान राम के साथ घटित हुई इस घटना के बारे में पता चला. उनके ऊपर मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा हो क्योंकि एक ओर पिता की अकस्मात मृत्यु हो गयी, तो दूसरी ओर जहाँ ये आशा थी कि पिता की मृत्यु के बाद पिता समान बड़े भाई राम की छत्रछाया में रहने की शांति भी उनसे छिन चुकी थी. साथ ही साथ राज्य को कुशलता पूर्वक चलने की जिम्मेदारी भी अब राजकुमार भरत पर आ चुकी थी और इस जिम्मेदारी को वे कतई नहीं निभाना चाहते थे क्योंकि वे ये जानते और समझते थे कि अयोध्या राज्य पर अधिकार उनके बड़े भाई राम का हैं और उनसे यह अधिकार छीनकर माता कैकयी ने उन्हें [भरत को] यह अधिकार दिलाया हैं. इस ग्लानि भाव से राजकुमार भरत भरे हुए होते हैं. साथ ही साथ वे अपने माता कैकयी से भगवान राम के प्रति किये गये उनके दुर्व्यवहार के लिए रुष्ट भी हैं. इन सभी भावनाओं से घिरे होने के कारण और भगवान राम को वापस अयोध्या लाने के लिए वे अपने बड़े भाई भगवान राम से मिलने का निश्चय करते हैं. राजकुमार भरत अपने बड़े भाई राम से मिलने को आतुर हैं और इसी कारण वे अपनी सेना में सबसे आगे चल रहे हैं और उनके साथ तीनों माताएँ, कुल गुरु, महाराज जनक और अन्य श्रेष्ठी जन भी हैं. ये सभी मिलकर प्रभु श्री राम को वापस अयोध्या ले जाने के लिए आये हैं. जैसे ही राजकुमार भरत अपने बड़े भाई श्री राम को देखते हैं, वे उनके पैरों में गिर जाते हैं और उन्हें दण्डवत प्रणाम करते हैं, साथ ही साथ उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती हैं. भगवान राम भी दौड़ कर उन्हें ऊपर उठाते हैं और अपने गले से लगा लेते हैं, दोनों ही भाई आपस में मिलकर भाव विव्हल हो उठते हैं, अश्रुधारा रुकने का नाम ही नहीं लेती और ये दृश्य देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग भी भावुक हो जाते हैं. तब राजकुमार भरत पिता महाराज दशरथ की मृत्यु का समाचार बड़े भाई श्री राम को देते हैं और इस कारण श्री राम, माता सीता और छोटा भाई लक्ष्मण बहुत दुखी होते हैं. भगवान राम नदी के तट पर अपने पिता महाराज दशरथ को विधी – विधान अनुसार श्रद्धांजलि देते हैं और अपनी अंजुरी में जल लेकर अर्पण करते हैं. अगले दिन जब भगवान राम, भरत, आदि पूरा परिवार, महाराज जनक और सभासद, आदि बैठे होते हैं तो भगवान राम अपने अनुज भ्राता भरत से वन आगमन का कारण पूछते हैं. तब राजकुमार भरत अपनी मंशा उनके सामने उजागर करते हैं कि वे उनका वन में ही राज्याभिषेक करके उन्हें वापस अयोध्या ले जाने के लिए आए हैं और अयोध्या की राज्य काज संबंधी जिम्मेदारी उन्हें ही उठानी हैं, वे ऐसा कहते हैं. महाराज जनक भी राजकुमार भरत के इस विचार का समर्थन करते हैं. परन्तु श्री राम ऐसा करने से मना कर देते हैं, वे अयोध्या लौटने को सहमत नहीं होते क्योंकि वे अपने पिता को दिए वचन के कारण बंधे हुए हैं. राजकुमार भरत, माताएँ और अन्य सभी लोग भगवान राम को इसके लिए मनाते हैं, परन्तु वचन बद्ध होने के कारण भगवान श्री राम ऐसा करने से मना कर देते हैं. तब राजकुमार भरत बड़े ही दुखी मन से अयोध्या वापस लौटने के लिए प्रस्थान करने की तैयारी करते हैं, परन्तु प्रस्थान से पूर्व वे अपने भैया राम से कहते हैं कि “अयोध्या पर केवल श्री राम का ही अधिकार हैं और केवल वनवास के 14 वर्षों की समय अवधि तक ही मैं [भरत] उनके राज्य का कार्यभार संभालूँगा और इस कार्य भार को सँभालने के लिए आप [श्री राम] मुझे आपकी चरण – पादुकाएं [Sandles]मुझे दे दीजिये, मैं इन्हें ही सिंहासन पर रखकर, आपको महाराज मानकर, आपके प्रतिनिधि के रूप में 14 वर्षों तक राज्य काज पूर्ण करूंगा, परन्तु जैसे ही 14 वर्षों की अवधि पूर्ण होगी, आपको पुनः अयोध्या लौट आना होगा अन्यथा मैं अपने प्राण त्याग दूंगा.” * Unauthorized downloading and duplicating on YouTube channel may lead to claim/strike by YouTube*

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