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भारतीय इतिहास में गोंड साम्राज्य उल्लेखनीय स्थान रखता है। दिल्ली सल्तनत के खिलजी और तुगलक शासकों की प्रसार नीति से जब मध्य और दक्षिण भारत के स्थापित राजवंश बिखर रहे थे तब इस शून्य को भरने के लिए जनजातीय मूल गोंड राजवंश उभरा। गोंड राजवंशों ने उत्तर, मध्य और दक्षिण भारत के बड़े क्षेत्र पर शासन किया। अकबरकालीन इतिहासकार अबुल फज़्ल इस क्षेत्र को गोंडवाना की संज्ञा देता है। विद्वान इतिहासकारों ने चन्दा, गढ़/मान्डला की राजधानियों से गोंड शासकों उत्तर एवं दक्षिण भू-भाग पर शासन किया तो मध्य भारतीय गोंड राज्य व्यवस्थाएँ दो राजधानियों देवगढ़ और खेरला राजधानियाँ से नियंत्रित हो रही थीं। इन राजधानियों में से केवल गोंड राज की राजधानी चन्दा समतल इलाके में थी जहाँ की किलेबन्दी इस क्षेत्र के प्रथम गोंड शासक खंडकिया बलाल शाह ने 1450 ई. में की थी। सामान्यतौर पर ये गोंड राज आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और उड़ीसा (आदिलाबाद, चन्द्रपुर, बस्तर और कोरापुट जिलों) के बड़े हिस्से तक फैला था। इन गोंड राजवंशों में से सबसे महत्वपूर्ण गढ़/मांडला में गोंड शासन की नींव राजा जदूराय द्वारा डाली गई जो 1480 ई. में संग्रामशाह के शासनकाल में अपने चरम पर पहुँच गया। इसी वंश में चन्देल राजाओं की राजकुमारी रानी दुर्गावती का ब्याह राजा दलपत शाह के साथ हुआ। मुगलों तथा अंग्रेजों के दमन से इनका साम्राज्य अस्त हुआ। इसके बाद ये जनजाति पहाड़ों और जंगलों में सिमट गई। स्वभावतः ही पहाड़ों एवं जंगलों से आच्छादित झारखण्ड भी इनकी शरणास्थली बनी। मुख्यधारा के इतिहासकारों की इन जनजातीय शासकों में अभिरूचि नहीं रहने के कारण ये भारतीय इतिहास के पन्नों में अंकित होने से वंचित हो गए। झारखंड में इनकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 54,841 है। मूल रूप से ये जनजाति सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी-सिंहभूम, बोकारो, साहेबगंज, धनबाद तथा राँची में निवास करती है।